हर एक मोड़ पर हैं बहुरूपी, कोई
हनुमान बने बैठा है और
कोई महा काली,
कोई चंदन
लिए
फिरता है कोई जनता को लगाए
चूना, सरकार की जेब करे
ख़ाली। दूर काँस वन
पार इक पहाड़ी
नदी बहती
है, मैं
वहां अक्सर उसे तलाश करता हूँ
जो मेरे अंतरतम में रहती है।
हर शख़्स है यहाँ मृग -
तृषा का शिकार,
मुखौटे और
चेहरे में
फ़र्क़ नहीं कर पाता, और फिरता
है उम्र भर यूँ ही निर्विकार।
हर एक रेड - सिग्नल
पर हूँ मैं शून्य
हाथ बढ़ाए
हुए,
शीशों के पार हो तुम, हर एक - -
हरित भूमि पे नज़र गड़ाए
हुए। जो दिन में ठाकुर
जी की डाली लिए
हुए फिरता
है, वही
सांझ ढले अंध गली से चल कर
ठेके में मुझसे मिलता है।
और वो चूना वाला,
असल में सभी
बहुरूपियों
का अधिनायक है,तिहत्तर - -
सालों से वही एकमात्र
उन्नयन का बड़ा
परिचायक है।
* *
- - शांतनु सान्याल
,
हनुमान बने बैठा है और
कोई महा काली,
कोई चंदन
लिए
फिरता है कोई जनता को लगाए
चूना, सरकार की जेब करे
ख़ाली। दूर काँस वन
पार इक पहाड़ी
नदी बहती
है, मैं
वहां अक्सर उसे तलाश करता हूँ
जो मेरे अंतरतम में रहती है।
हर शख़्स है यहाँ मृग -
तृषा का शिकार,
मुखौटे और
चेहरे में
फ़र्क़ नहीं कर पाता, और फिरता
है उम्र भर यूँ ही निर्विकार।
हर एक रेड - सिग्नल
पर हूँ मैं शून्य
हाथ बढ़ाए
हुए,
शीशों के पार हो तुम, हर एक - -
हरित भूमि पे नज़र गड़ाए
हुए। जो दिन में ठाकुर
जी की डाली लिए
हुए फिरता
है, वही
सांझ ढले अंध गली से चल कर
ठेके में मुझसे मिलता है।
और वो चूना वाला,
असल में सभी
बहुरूपियों
का अधिनायक है,तिहत्तर - -
सालों से वही एकमात्र
उन्नयन का बड़ा
परिचायक है।
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- - शांतनु सान्याल
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