27 अगस्त, 2020

ताज़ा उच्छ्वास - -

छिन्न ह्रदय ले के यथापूर्व रात ढल -
गई, बहुत कुछ कहना था उसे,
ज्योत्स्ना के स्रोत में  यूँ
ही अविरल बहना
था उसे, शेष
प्रहर में
फिर मेघ गहराए, फिर एक मुलाक़ात
विफल गई, यथापूर्व रात ढल गई।
बिखरे हैं वीथि के गोद में कुछ
अनाम फूल, अनंत मेघदल
थमे से हैं नयन के कूल,
सुरभित वो सभी
प्रतिश्रुतियाँ
हैं अब
दीर्घ निःश्वास, अविरत शून्यता हैं -
आसपास, फिर भी है जीवन
अग्रसर अनायास, पुनः
समय का हिंडोला
घूमता हुआ,
फिर
फेंको कोई रेशमी रुमाल कहीं से, उठा
ले ये जीवन फिर एक ताज़ा
उच्छ्वास, अविरत
शून्यता में भी
रहो तुम
मेरे
पास, जीवन यूँ ही अग्रसर रहे - - - - -
अनायास।

* *
- - शांतनु सान्याल 

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