26 अगस्त, 2020

लौटना है असमंभव - -

उस गहन निशीथ से अब लौटना है
असमंभव, छूट गए न जाने
कितने सांध्य प्रदीप,
बिखरे हैं सागर
तट कुछ
पद -
चिन्ह हमारे और कुछ निष्प्राण सीप,
अब जहाँ हैं, वहां दूर तक है घना
छायावृत, शब्दहीन, लापता
हैं दुनिया के कलरव।
यहाँ से लौटना है
असमंभव।
निःशर्त
कुछ
भी नहीं होता हमें न समझाओ नई
परिभाषा, वही चिर विनिमय,
वही मौन अभिनय, वही
सुप्त अभिलाषा, न
जिलाओ हमें
दे कर,
पुनः शापमुक्ति का झांसा, न - -
समझाओ जीवन की नई
परिभाषा।

* *
- - शांतनु सान्याल

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