22 अगस्त, 2020

वापसी एक अग्रदूत की - -


अंतिम छोर तक पहुँचते पहुँचते
तथाकथित अग्रदूत ने दिखाए
अपने ख़ाली हाथ, इसमें
नया कुछ भी न था,
हम कल भी
अकेले
थे और आज भी नहीं कोई हमारे
साथ। उसने न जाने क्या
सोच कर दी थी हमें
दिल जीतने की
की किताब,
उम्र भर
हम उसे पढ़ते रहे लेकिन हो न
सके कभी कामयाब। उनका
हुनर तो देखिए लफ़्ज़ों
में ही ज़माने को
जीत लिया,
हमने
सिर्फ़ कुछ एक हर्फ़ों में दिखाया
था उन्हें आईना, देखते ही,
वो हम पर, शक्त पंजों
को अपना भींच
लिया,
बहोत मुश्किल है प्रतिकूल स्रोत
में बहना, लिहाज़ा दुनिया के
साथ हमने भी आसान
राहों से गुज़रना
सीख लिया।
लेकिन
हम चाह कर भी अपने ज़मीर -
को दफ़ना न सके, वो लाख
कोशिशों के बाद भी हमें
अपने मातहत ला 
न सके, शायद
यही वजह
थी कि
वो अंतिम छोर तक आ न सके।

* *
- शांतनु सान्याल

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