उन पिघलते पलों में कहीं खुलते हैं
पुष्पदल, और गहरी सांसों में
उठते हैं सहस्त्र गंधकोष,
उन्हीं अनाहूत क्षणों
में होता है कहीं
जीवन का
नव -
रूपांतरण, एक अभिनव उड़ान का
उद्घोष। जब टूट जाएँ सभी
दैहिक कांच के आवरण,
पिंजर से मुक्त
तभी हो
पंछी
निर्मेघ गगन की ओर, अट्टालिकाएं
न उसे रोक पाएं, न कोई वज्र
की ज़ंजीर, आकाशमुखी
जब हो आवाहन,
कोई न रोक
पाए तब
मुक्ति
युद्ध के आमंत्रण। उन पलों में मिट -
जाएँ सभी दिलों के फ़ासले, जब
हर कोई गाए एक ही सुर में
विजय गान, चाहे जिस
गली कूचे से कोई
निकले दिलों
में न रहे
कोई
शून्य स्थान।
* *
- - शांतनु सान्याल
पुष्पदल, और गहरी सांसों में
उठते हैं सहस्त्र गंधकोष,
उन्हीं अनाहूत क्षणों
में होता है कहीं
जीवन का
नव -
रूपांतरण, एक अभिनव उड़ान का
उद्घोष। जब टूट जाएँ सभी
दैहिक कांच के आवरण,
पिंजर से मुक्त
तभी हो
पंछी
निर्मेघ गगन की ओर, अट्टालिकाएं
न उसे रोक पाएं, न कोई वज्र
की ज़ंजीर, आकाशमुखी
जब हो आवाहन,
कोई न रोक
पाए तब
मुक्ति
युद्ध के आमंत्रण। उन पलों में मिट -
जाएँ सभी दिलों के फ़ासले, जब
हर कोई गाए एक ही सुर में
विजय गान, चाहे जिस
गली कूचे से कोई
निकले दिलों
में न रहे
कोई
शून्य स्थान।
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं