उँगलियों के नोक से कभी भीगे
कांच की खिड़कियों में मेरा
नाम लिखना, उड़ते
बादलों को मेरा
सलाम
कहना, मैं अभी भी हूँ शून्य में
तैरता हुआ, तुम्हें ग़र मिल
जाए सितारों का जहाँ,
मेरे बिखरने की
कहानी
तमाम कहना। मैं जहाँ हूँ वहां
रौशनी आती नहीं उन्मुक्त
हो कर, ताहम ज़िन्दगी
को तलाश है एक
रोशनदान की,
ज़मीं को
तो बाँट लिया लोगों ने धर्म -
अधर्म की हदों में, जो न
देखे विभेदन की
दूरबीन से,
मुझे
तलाश है उस पारदर्शी - - -
आसमान
की।
* *
- - शांतनु सान्याल
कांच की खिड़कियों में मेरा
नाम लिखना, उड़ते
बादलों को मेरा
सलाम
कहना, मैं अभी भी हूँ शून्य में
तैरता हुआ, तुम्हें ग़र मिल
जाए सितारों का जहाँ,
मेरे बिखरने की
कहानी
तमाम कहना। मैं जहाँ हूँ वहां
रौशनी आती नहीं उन्मुक्त
हो कर, ताहम ज़िन्दगी
को तलाश है एक
रोशनदान की,
ज़मीं को
तो बाँट लिया लोगों ने धर्म -
अधर्म की हदों में, जो न
देखे विभेदन की
दूरबीन से,
मुझे
तलाश है उस पारदर्शी - - -
आसमान
की।
* *
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र प्रोत्साहित करने के लिए - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र प्रोत्साहित करने के लिए - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र प्रोत्साहित करने के लिए - - नमन सह।
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