17 अगस्त, 2020

पड़ाव बिंदु - -

यूँ ही कुछ देर और, मेरी साँसों के साथ
चलते रहो, मोम की तरह मेरे सीने
में पिघलते रहो, न जाने
कितनी दुआओं के
बाद तुम्हें
पाया है
रूह ए शमा की तरह दिल की गहराइयों
में जलते रहो। किसे मालूम है
हवाओं का रुख़, सुबह से
पहले ख़्वाबों के
उनवान, न
बदल
जाएं, अभी तो हो तुम, मेरी जिस्म ओ -
जां के मुख़ातिब, देख कर नई
रौशनी, फिर कहीं तुम्हारे
दिल के अरमान, न
बदल जाएं।
ये सच
है कि मेरे हिस्से की धूप अक्सर आती
है क़िश्तों में, फिर भी खिलने की
ख़्वाहिश किसे नहीं होती,
ये और बात है कि
अब वो मिठास
ही न रही
रिश्तों
में। निशि पुष्पों की तरह बिखर जाते -
हैं सभी पल अनुरागी, इक भीगा
सा एहसास ख़ुश्बुओं में
डूबा हुआ, रूह के
हमराह बस
चलता
रहता है, जैसे चलता जाए कोई तनहा
वैरागी। तुम्हारी आँखों में कहीं
बसता है प्रवासी सपनों का
गाँव, मेरी झुलसी हुई
ज़िन्दगी को
अक्सर
जहाँ मिलता है इक पुरसुकून मरहमी
छाँव।

* *
- - शांतनु सान्याल

8 टिप्‍पणियां:

  1. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को    "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द"  (चर्चा अंक-3798)     पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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