तारीख़ बदलती है अपनी जगह, कैलेण्डर
के पृष्ठ चाहे तुम भूल जाओ बदलना,
शाहराहों से ले कर घुटन भरी
नुक्कड़ तक, ज़िन्दगी
को है यूँ ही नंगे
पाँव चलना।
अभी
तुम्हारे माथे में हैं जीत का मुकुट, ताज
ए अहंकार, नील नद के फैरोगण
से लेकर सिकंदर तक, सभी
खण्डहरों में जा मिले,
कोई नहीं यहाँ
अमरत्व
का
हक़दार। कौन है वो पुरोहित या त्रिकाल
दर्शी, जो उजड़े वेदिका पे चिराग़ ए
शाम जला गया, अभी तक हैं
ज़िंदा, गुमशुदा रूह की
सिसकियाँ, कौन
अभिशप्त
सांसों
को फिर से जिलाने का इश्तेहार दिखा
गया, हमारे हाथोँ, हमारी ही क़त्ल
का क़ुबूलनामा लिखा गया।
* *
- शांतनु सान्याल
के पृष्ठ चाहे तुम भूल जाओ बदलना,
शाहराहों से ले कर घुटन भरी
नुक्कड़ तक, ज़िन्दगी
को है यूँ ही नंगे
पाँव चलना।
अभी
तुम्हारे माथे में हैं जीत का मुकुट, ताज
ए अहंकार, नील नद के फैरोगण
से लेकर सिकंदर तक, सभी
खण्डहरों में जा मिले,
कोई नहीं यहाँ
अमरत्व
का
हक़दार। कौन है वो पुरोहित या त्रिकाल
दर्शी, जो उजड़े वेदिका पे चिराग़ ए
शाम जला गया, अभी तक हैं
ज़िंदा, गुमशुदा रूह की
सिसकियाँ, कौन
अभिशप्त
सांसों
को फिर से जिलाने का इश्तेहार दिखा
गया, हमारे हाथोँ, हमारी ही क़त्ल
का क़ुबूलनामा लिखा गया।
* *
- शांतनु सान्याल
बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता । हार्दिक आभार और बहुत -बहुत शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह!उम्दा सृजन ।
जवाब देंहटाएंतुम्हारे माथे में हैं जीत का मुकुट, ताज
जवाब देंहटाएंए अहंकार, नील नद के फैरोगण
से लेकर सिकंदर तक, सभी
खण्डहरों में जा मिले,
कोई नहीं यहाँ
अमरत्व
का
हक़दार।
वाह!!!!
लाजवाब सृजन।