कुछ अश्क ए मोती बिखरे हुए सिरहाने से मिले,
आईना था लाजवाब मुद्दतों बाद दीवाने से मिले,
अक्स ए जुनूं था या अहद ए बर्बादी मालूम नहीं,
रूह से उतर कर शम'अ आख़िर परवाने से मिले,
आईन ए ज़माना, संगसारी से ज़्यादा क्या करेगा,
हज़ार पर्दों से बाहर, न जाने किस बहाने से मिले,
आसां नहीं है दिलों का एक दूजे में तहलील होना,
रहने दो मीठा भरम कि दिल हाथ मिलाने से मिले,
हर सिम्त है ख़ुद को राजा कहलवाने का मुक़ाबला
हर्ज़ क्या ताज ओ तख़्त झूठी क़सम खाने से मिले,
नक़्श ए दुनिया में उसी की तूती बोलती है हर तरफ़
कौन देखता है कि ओहदा ए ख़ास बरगलाने से मिले,
- - शांतनु सान्याल