नजूमी ने ज़िन्दगी भर, कई ख़्वाब दिखाए,
शदीद प्यास के आगे, गहरा सराब दिखाए,
सीलन भरे कमरे में तन्हा दीया बुझता रहा,
शबनमी बूंदों में, अक्स ए माहताब दिखाए,
जब कभी हम ने इक ख़ुशगवार लम्हा चाहा,
मज़हबी ठेकेदार ने पोशीदा अज़ाब दिखाए,
हर रोज़ ज़िन्दगी ने नई उम्मीद से दस्तक दी,
रात फिर पुराने बोतल में नया शराब दिखाए,
कुछ तुम थे ज़रा बरहम कुछ हम गुमसुम से,
फिर भी वक़्त ने इश्क़ को लाजवाब दिखाए,
- - शांतनु सान्याल
वाह
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंसीलन भरे कमरे में तन्हा दीया बुझता रहा,
जवाब देंहटाएंशबनमी बूंदों में, अक्स ए माहताब दिखाए,
जब कभी हम ने इक ख़ुशगवार लम्हा चाहा,
मज़हबी ठेकेदार ने पोशीदा अज़ाब दिखाए,
वाह!!!!
आपका हार्दिक आभार।
हटाएंशांतनु जी, क्षमा के साथ एक बात कहना चाहूंगी कि ''सदीद'' के स्थान पर ''शदीद '' आना चाहिए ...शेष कविता शानदार है ...बहुत खूब है
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंआप एकदम सही हैं माननीया, मैंने संशोधन कर दिया
जवाब देंहटाएंहै, नमन सह आभार ।