बारहा भुलाया जिसे बारहा वो नज़दीक रहा
ज़ीनत ए फ़लक़ में यूँ तो हैं सितारे बेशुमार
अमावस में भी वो अंदर तक मेरे शरीक रहा
ख़्वाबों के घर, बिखरे ताश के पत्तों की तरह
कभी ख़ुशी बेशुमार कभी उजड़ा नसीब रहा
किसी और का था वो गुमशुदा कोई ख़ज़ाना
उम्र भर वो तोहफ़ा दिल के बहुत क़रीब रहा
मोतियों का सफ़र रहा साहिल से ताज तक
रेत की दुनिया में इक तन्हा बेजान सीप रहा
बहुत कठिन है जीवन में ख़्वाबों की ताबीर
दास्तां ए इश्क़ दिलकश के संग अजीब रहा
- - शांतनु सान्याल
वाह
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
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