09 दिसंबर, 2023

कोई शिकायत नहीं - -

उतर चला है चेहरे से रंग ओ रोगन,
अब आईने से शिकायत भी न रही,

न कशिश बाक़ी, न कोई बेक़रारी, अब
पहली सी वो मुहोब्बत भी न रही,

वो तमाम सब्ज़ पत्तों का ठिकाना पूछता
है पतझर का एक तन्हा मुसाफ़िर,

बहुत मुश्किल है उसके दर तक पहुंचना
दरअसल अब वो सदाक़त भी न रही,

किस पे करें यक़ीन, हर एक मोड़ पर हैं
हज़ार स्वांगों का बढ़ता हुआ जुलूस,
मन्नतों के पत्थर दरख़्त पे हैं
बेजान से लटके दिलों में
वो सच्ची नियत भी
न रही, उतर
चला है
चेहरे से रंग ओ रोगन, अब आईने से
शिकायत भी न रही ।

- - शांतनु सान्याल

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