कुछ इस तरह से रूह को छू लो
कि ज़िन्दगी तासीर ए संदल हो जाए,
बियाबां के सुलगते राहों में इक दस्त
ए शफ़्फ़क़त भरा आँचल हो जाए,
इक अधूरी लकीर ए तिश्नगी, जो
गुज़रती है दिल की राहों से कहीं दूर,
ग़र संग चलो हमराही बन कर तो
ज़िन्दगी का सफ़र मुक्कमल हो जाए,
खोजता हूँ नाहक़ अपने आसपास
बिखरे हुए नक़ली मोतियों की चमक,
ख़ुद के अंदर झांकते ही तमाम
उलझनें अपने आप ओझल हो जाए,
रेत पे लिखे इबारतों की तरह इक
दिन मिट जाएंगे सभी रिश्तों के बेल,
लोग पुकारते रहें जिस्म चुपचाप
उफ़क़ के पार दूर कहीं निकल जाए ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 दिसंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम
आपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
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