16 दिसंबर, 2023

किसी मोड़ पे - -

 

न जाने कितने मरहलों पे हम जीत के हार गए,
मेंहदी की तरह सूनी हथेली की उम्र संवार गए,

अंधेरों से है जन्मों की निस्बत जलते रहे बूंद बूंद,
कुछ भी न था हमारा लिहाज़ा सब कुछ वार गए,

इक दरिया की तरह बहती रही ज़िंदगी रफ़्ता रफ़्ता,
डूबते उभरते सांसों के, इस पार कभी उस पार गए,

वक़्त के साथ, ख़ौफ़ ए मौत भी चला जाता है,
हज़ारों चाहतें थी, हज़ार बार ख़ुद को मार गए,

न जाने कितने मरहलों पे हम जीत के हार गए ।

- - शांतनु सान्याल

4 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past