कुछ और भी हैं बांध्य भूमि, अधखिले जीवन,
बबूल से बिंधे कई झूलते पतंग, तुम्हारे
व मेरे मध्य छुपा हुआ सामीप्य -
जो आवधिक है शायद जिसे
अनुभव तो किया जा
सके देखना हो
कठिन,
देह से निकल कर सोच कहीं गुम न हो जाए, -
जीवन चाहता है बहुत कुछ जानना,
महसूस करना, तुम वो गंतव्य
नहीं जहाँ आवाज़ तो जाए
मगर दस्तख़त कर,
यूँ ही लौट आए
सहसा,
चाहता है मन सजल मेघ अणु बनना, उन
कुम्हलाये पंखुड़ियों से है पुरानी
प्रतिबद्धता, भावनाओं का
अनुबंध, मानवीय -
संधि, मैं नहीं
चाहता
किसी तरह भी प्रेम में संधिविग्रह, ये सच है
की मेरी साँसें अब भी उठती हैं किसी
के लिए बेचैन हो कर किन्तु वो
तुम ही हो ये कोई ज़रूरी नहीं,
आँखों के परे जो दर्पण
है खड़ा एकटक, वो
कोई नहीं मेरा
ज़मीर है,
जो दिलाता है याद, करता है हर पल
जीवन अनुवाद।
गज़ब की गहन प्रस्तुति है प्रेम की।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वंदना जी - नमन सह
जवाब देंहटाएंBAHUT BADHIYA PRASTUTI
जवाब देंहटाएंthanks ana ji - naman sah
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