तक महके दिलों के दरीचे, वो
अपनापन, जिसमें हो
अथाह पवित्र
गहराई !
खिलो कुछ इस तरह दिल से, कि - -
मुरझा के भी रहे ख़ुश्बूदार,
नाज़ुक जज़्बात !
तमाम रास्ते
यकसां
ही नज़र आए जब कभी देखा दिल की
नज़र से, ये बात और थी, कि
ज़माने ने लटकाए रखी
थी मुख़्तलिफ़
तख़्ती !
लेकिन, हमने भी दर किनार किया वो
सभी ख़्याल ए ईमान, इक
इंसानियत के सिवा,
तुम मानो या
न मानो,
इक यही सच्चा धरम है, बाक़ी कुछ भी
नहीं ये जहां, इक ख़ूबसूरत भरम
के सिवा।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
painting by Ann Mortimer
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