न देख फिर मुझे फिर वही
अन्दाज़ ए महलक
की नज़र से,
अभी
अभी उभरा हूँ मैं तबाहकुन
तूफां के असर से,
दूर तलक हैं
बिखरे हुए
दर्द ओ ग़म के क़तरे, फिर
भी हैं तेरी आंखे न
जाने क्यूँ इस
क़दर
बेख़बर से, ज़रा कुछ देर तो
सही, सजने दे मजलिस
ए सितारा, जिस्म
ओ जां अभी
तक हैं
कुछ तर बतर से - - - - -
* *
- शांतनु सान्याल
अन्दाज़ ए महलक - घातक अन्दाज़
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
स्याह गूं-ओ-शब् आँख ना दिखाओ मुझको..,
जवाब देंहटाएंशम्मे-कुश्तां हूँ शबिस्ताँ में सजाओ मुझको..,
फ़ाजिलो-खाना ख़राब तलाशें हैं शबे-गिर्द मुझे..,
शफ़क रुखसार हूँ शब्बा खैर छूपाओ मुझको.....
thanks a lot dear friend
जवाब देंहटाएंअंदाज ए बयां भी उतना ही महलक है
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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