अपलक देखते रहे, न लब ही खुले, न ही 
साँस को कोई राहत, इक ख़ामोश 
लहर बहती रही दरमियां 
साहिल ओ समंदर, 
वो सिफ़र 
था या 
दर तमाम कायनात, वजूद मेरा उस - - 
निगाह में डूबता गया, न जाने 
कहाँ है वो आख़री नुक़ता,
जहाँ हो मुकम्मल 
मेरी चाहत, 
मंज़िल 
दर मंज़िल, इक तलाश बेपायां, लम्हा 
दर लम्हा अह्तराक़ मुसलसल,
बेअसर हैं सभी बारिशें 
आसमां की - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
सिफ़र - शून्य 
कायनात - ब्रह्माण्ड
नुक़ता - बिंदु  
बेपायां - अंतहीन 
अह्तराक़ मुसलसल - लगातार दहन 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आबनूस के तह इक जब्त समंदर हैं ये..,
जवाब देंहटाएंआबे-दोज है दीदो-रुखसार से बदर हैं ये..,
ए काश के ग़मख़ार शम्मे-शोला हो कर..,
अब्रो-बर्क दहे और अश्क मुसलसल बहे.....
बेहद दिलकश है अंदाज़ ए बयां आपका, तहे दिल से शुक्रिया ।
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