11 जुलाई, 2023

शीर्षक विहीन

वो नज़दीकियाँ जो रिश्ते में ढल न सकी,
दोस्ती जो हाथ मिलाने से आगे बढ़
न सकी, वही चेहरे अक्सर
सवाल करते हैं जो
ख़ुद को जवाब
दे न सके,
वो नशा जो वक़्त के पहले ही उतर गया,
मुझे पता ही न चला, ज़िन्दगी की
उधेड़ बुन में यूँ उलझा रहा
मेरा वजूद, और कब
मैं बना एक
सीढ़ी,
और कोई मुझ से होकर ख़ामोश बड़ी -
आसानी से मौसम की तरह
गुज़र गया, वो शख्स
जो करता था
कभी
दावा हमदर्दी या मुहोब्बत का, दरअसल
वही आदमी मुझे पहचान ने से
बड़ी खूबसूरती से मुकर
गया, क़रीब
बहोत
क़रीब, आ कर देखा मेरा शक्ल ज़रूर उसने,
सर हिला कर आगे बढ़ गया - - 
- शांतनु सान्याल   
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