तेरी परछाइयाँ, झुलसते
सहरा में भी है सुकूं
ओ राहत मुझ
को, नुक़ता
नज़र के
असूल जो भी हों जहान के,
उजड़ने नहीं देती, यूँ तेरी
बेकरां चाहत मुझ को,
गिरफ़्त ए गर्दबार
से भी उभरता
है जीस्त
यूँ बार
बार,
बिखरने नहीं देती हर पल
तेरी नज़ाकत मुझ को,
अक्स ए आस्मां
की तरह है
मेरी
वफ़ा, हज़ार धुंध में भी मिटने
नहीं देती तेरी सदाक़त
मुझ को।
* *
- शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!