मबहम तीरगी से निकल फिर जिस्म ओ जां
चाहती है, इक चश्म मुसाफ़िरख़ाना,
ख़ुदा के वास्ते न करो यूँ बंद
ज़िन्दगी के रास्ते, कि
मुद्दतों बाद देखी
है हमने
नूर ए आशियाना, कुछ देर सही, रहे रौशन -
चाहतों के बेक़रार जरयां, कुछ पल
और खुला रहे, ख़्वाबों का
शामियाना, फिर
सराब ए
जज़्बात को मिले शबनमी अहसास, फिर - -
ज़िन्दगी में खिले गुल नादिर कि
ज़माना हुआ ख़ुशबू छुपाए
हम बैठे हैं दिल की
गहराइयों में !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
मबहम तीरगी - सघन अँधेरा
चश्म मुसाफ़िरख़ाना - आँखों का सराय
जरयां - बहाव
सराब - मृगजल
नादिर - दुर्लभ
चाहती है, इक चश्म मुसाफ़िरख़ाना,
ख़ुदा के वास्ते न करो यूँ बंद
ज़िन्दगी के रास्ते, कि
मुद्दतों बाद देखी
है हमने
नूर ए आशियाना, कुछ देर सही, रहे रौशन -
चाहतों के बेक़रार जरयां, कुछ पल
और खुला रहे, ख़्वाबों का
शामियाना, फिर
सराब ए
जज़्बात को मिले शबनमी अहसास, फिर - -
ज़िन्दगी में खिले गुल नादिर कि
ज़माना हुआ ख़ुशबू छुपाए
हम बैठे हैं दिल की
गहराइयों में !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
मबहम तीरगी - सघन अँधेरा
चश्म मुसाफ़िरख़ाना - आँखों का सराय
जरयां - बहाव
सराब - मृगजल
नादिर - दुर्लभ
बहुत ही सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंthanks dear
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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