07 जुलाई, 2023

इब्तदा तो याद नहीं

बदलियाँ बरस कर खो गयीं जाने कहाँ,
अब पुरसुकूं आराम लगे, वादियों
से उठता धुआं गहराए, अब
दिल में थम सा गया
कोहराम लगे,
तिश्नगी-ए-दिल बड़ा बेचैन था, आँखों
के बरसने से पहले ऐ दोस्त भीगी
पलकें, उठतीं गिरतीं बूंदें,
आज ख़ूबसूरत फिर
मखमली ये
शाम लगे,
सूखे फूलों के निशाँ बाक़ी हैं, ज़िन्दगी
बेदाग़ नहीं साहिब, हूँ अजनबी ये
निगाहों का फर्क़ है, वैसे जाना
पहचाना ये गाम लगे ,
चिराग़ों के शहर
में गुम सा
गया कहीं, वो अंधेरों का दोस्त मेरा,
आइना भी सबूत चाहे ये और
बात है,शायद चेहरा मेरा
भी गुमनाम
लगे,
वो ख़त अब तलक है मौजूद, क्या
हुआ तहरीरें मिट गईं जिसकी,
छू लूँ उसे, अहसास मीठा
मीठा, दिल के क़रीब
अब तक वो नाम
लगे, उस
बज़्म में तन्हा बचाता रहा, अपने
साए को बार बार, सनम
परस्तिश, न जाने
और क्या,
बहोत प्यारे वो सभी इलज़ाम
लगे, दीवानगी इतनी की
मरना भी चाहूं, और
कभी जीने की
आरज़ू जागे
इब्तदा
तो याद नहीं, बेखौफ़, बेअसर एक
शिद्दत-ए-अंजाम
लगे।
- शांतनु सान्याल

6 टिप्‍पणियां:

  1. बदलियाँ बरस कर खो गयीं जाने कहाँ, अब पुरसुकून आराम लगे
    वादियों से उठता धुआं गहराए, अब दिल में थम सा गया कोहराम लगे.

    बहुत सुन्दर रचना ... आभार

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  2. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ..............माफी चाहता हूँ..

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  3. सभी मित्रों को बहुत सारा धन्यवाद व् स्नेह, मेरी रचनाएँ आप लोगों को अच्छी लगी, ये मेरा सौभाग्य है कि मुझ जैसे एक साधारण व्यक्ति की भावनाओं को आपने सराहा /

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