तृष्णा व मृगजल के मध्य जीवन, कदाचित
खोजे शीतल तरु छाया, कुछ प्रणय बूंदें,
कुछ वास्तविक, कुछ स्वप्निल
माया, उन तुहिन कणों में
थे छुपे व्यथा कितने
खिलते पुष्पों को
ज्ञात नहीं,
गंध कोषों में भरे फिर भी उसने सुरभित -
भावनाएं, वक्षस्थल में सजाये नभ
ने अनगिनत ज्योति पुंज;
तमस घन रात्रि ने
किंचित कहा
हो धन्यवाद या नहीं, कहना है कठिन, फिर
भी पुनः पुनः आकाश फैलाये अपनी
बाहें, वृष्टि वन हों या धू धू
मरू प्रांतर, उसकी
प्रतिछाया
अदृश्य
होकर भी करे प्रतिपल आलिंगनबद्ध !
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 13 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसुंदर सृजन, युगों से चल रहा है यह अभिसार
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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