सीने के बहोत अंदर उतरती है सघन बरसात,
सुदूर क्षितिज रेखा तक फैला हुआ है एक
हरित प्रदेश, बिंदुओं की तरह बिखरे
पड़े है नन्हें नन्हें पठार, तृण
शीर्ष पर हैं प्रतिबिंबित
कुछ इंद्रधनुषी
बूंद, कुछ
शब्द
विहीन पल हैं सम्मुखीन, तितलियों के परों को
छूना चाहे मन अकस्मात, सीने के बहोत
अंदर उतरती है सघन बरसात। उस
पगडण्डी से हो कर अक्सर
गुज़रती है ज़िन्दगी
जहाँ मेघ छाया
घेर लेती है
माटी
की काया, हज़ार बार जन्म लेता हूँ मैं तुम्हारे
आँख की गहराइयों में, हज़ार बार चाहता
हूँ मृत्यु तुम्हारे पलक की परछाइयों
में, इस अंतहीन मोह की यात्रा
कभी रूकती नहीं, शीत अगन
लिए अंतरतम, जलती
रहती है युगों युगों
तक प्रणय
अगर
की काठ, सीने के बहोत अंदर उतरती है सघन
बरसात।
- शांतनु सान्याल
अगर की लकड़ी - सुगन्धित लकड़ी का नाम
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