11 अगस्त, 2023

काग़ज़ की नाव

बहा दिए हम ने वो सभी काग़ज़ की कश्तियां,
साहिल में टूटी पड़ी हुई हैं ख़्वाबों की रस्सियां,
मिट्टी के खिलौने बिखरे पड़े हैं दूर तक
बेतरतीब,
मुंडेर पर रोज़ उतरता है चांद, शीशे की
हैं सीढ़ियां,
फिर लौट कर उसी जगह पे काश हम
पहुंच पाते,
जहां पर आज भी हैं आबाद जुगनुओं
की बस्तियां,
बीते लम्हों के मोती जलते बुझते से हैं
नदी किनारे,
राहत ए जां है उम्र की ढलान में इश्क़
की परछाइयां ।
- शांतनु सान्याल


6 टिप्‍पणियां:

  1. आप ने लिखा.....
    हमने पड़ा.....
    इसे सभी पड़े......
    इस लिये आप की रचना......
    दिनांक 13/08/2023 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है.....
    इस प्रस्तुति में.....
    आप भी सादर आमंत्रित है......


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  2. बहुत ख़ूब ! जिस्म बूढ़ा हो सकता है पर दिल तो हमेशा जवान रहता है.

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