निर्बंध भावनाएं चाहती हैं उन्मुक्त
उड़ान, रहने दे कुछ देर और
ज़रा, यूँ ही खुला अपनी
आखों का ये नीला
आसमान !
निःशब्द अधर चाहे लिखना फिर
कोई अतुकांत कविता, बहने
दे अपनी मुस्कानों की,
अबाध सरिता,
टूटते तारे
ने बिखरते पल में भी रौशनी का
दामन नहीं छोड़ा, ये और
बात है कि अँधेरे की
थी अपनी कोई
मजबूरी,
उन अँधेरों से निकल ज़िन्दगी फिर
चाहती है नए क्षितिज छूना।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
उड़ान, रहने दे कुछ देर और
ज़रा, यूँ ही खुला अपनी
आखों का ये नीला
आसमान !
निःशब्द अधर चाहे लिखना फिर
कोई अतुकांत कविता, बहने
दे अपनी मुस्कानों की,
अबाध सरिता,
टूटते तारे
ने बिखरते पल में भी रौशनी का
दामन नहीं छोड़ा, ये और
बात है कि अँधेरे की
थी अपनी कोई
मजबूरी,
उन अँधेरों से निकल ज़िन्दगी फिर
चाहती है नए क्षितिज छूना।
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- शांतनु सान्याल
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