हिसाब किताब अर्थहीन सभी अंतमिल हैं बेमानी,
सूखे रिश्तों के बेल, दूर तक है, छायी हुई वीरानी,
ताहम दिल को रहता है, रौशन शाम का इंतज़ार,
दीये जलाओ प्रीत के, लहरों में बसी है ज़िंदगानी,
न जाने किस बूंद पे है ठहरा हुआ तुम्हारा ग़ुरूर,
कौन रहा अनंतकाल तक बस कुछ पल की है रवानी,
- शांतनु सान्याल
आपको भी सपरिवार शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
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जवाब देंहटाएंअहंकार ही सभी रिश्तों को तोड़ता है । आशा है आज सब अपना अहंकार जला देंगे।
आपका हार्दिक आभार।
हटाएंसच चार दिन की जिंदगी में सबसे हिलमिल खुशी से जीने का नाम ही जिंदगी है। अंधेरे से उजाला करना ही जिंदगी का मकसद हो सभी का तो फिर रोना काहे का,,,दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंकौन रहा अनंतकाल तक बस कुछ पल की है रवानी,!!! बस इतनी सी बात कोई समझ ले तो मलाल किस बात का?? सुन्दर रचना शान्तनु जी! दीपोत्सव की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकार करिए!🙏🙏
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंAppreciation for your thought-provoking content. Your post resonated with me.
जवाब देंहटाएंthanks dear
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