न जाने कितने अभियोग, न जाने कितनी
सज़ाएं, हज़ार कोड़ों के अदृश्य
निशान, फिर भी जीने की
चाहत कम नहीं होती,
पैरों में जकड़े हों
चाहे जितने
भी जंज़ीर
ज़िन्दगी
के रास्ते हैं अंतहीन अपनी जगह, असंख्य
विश्वासघात, मृगतृष्णा के कुहासे हैं दूर
तक, कांच के टुकड़ों पर नाचती
है ज़िन्दगी लहूलुहान क़दमों
से, फिर भी दिल की
झोली से शबनमी
राहत कम नहीं
होती, फिर
भी जीने
की
चाहत कम नहीं होती ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 23 नवंबर 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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आपका हार्दिक आभार।
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