भी बात नहीं होती,
घिरता है अँधेरा, लरजती हैं यूँ रह रह कर रक़्स ए बर्क़,
उठती हैं लहरें बहोत ऊपर, फिर भी बरसात नहीं होती,
नब्ज़ हाथों में थामें होता है वो लिए अश्क भरी निगाहें,
सदीद जीने की तमन्ना हो जब ज़िन्दगी साथ नहीं होती,
जी चाहता है के भर दूँ, हथेलियों पे, बेइन्तहां रंग गहरे,
हिना ए जिगर ले के भी पल भर की निजात नहीं होती,
उड़ती हैं शाम ढलते फिज़ाओं में इक अजीब सी ख़ुमारी,
ये और बात है कि हर शब ख़ूबसूरत चाँद रात नहीं होती,
बिखरते हैं कहकशां नीले समंदर में बेतरतीब दूर तलक,
बेमानी सभी फ़लसफ़े बिना उनके ये कायनात नहीं होती |
- - शांतनु सान्याल
घिरता है अँधेरा, लरजती हैं यूँ रह रह कर रक़्स ए बर्क़,
उठती हैं लहरें बहोत ऊपर, फिर भी बरसात नहीं होती,
नब्ज़ हाथों में थामें होता है वो लिए अश्क भरी निगाहें,
सदीद जीने की तमन्ना हो जब ज़िन्दगी साथ नहीं होती,
जी चाहता है के भर दूँ, हथेलियों पे, बेइन्तहां रंग गहरे,
हिना ए जिगर ले के भी पल भर की निजात नहीं होती,
उड़ती हैं शाम ढलते फिज़ाओं में इक अजीब सी ख़ुमारी,
ये और बात है कि हर शब ख़ूबसूरत चाँद रात नहीं होती,
बिखरते हैं कहकशां नीले समंदर में बेतरतीब दूर तलक,
बेमानी सभी फ़लसफ़े बिना उनके ये कायनात नहीं होती |
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंउम्दा शायरी
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंकामनाएं अधूरी ही रह जाती हैं
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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