शिरा उपशिराओं से बह कर वेदना स्रोत, एक दिन
हृत्पिंड को कर देगी पाषाण, तब कदाचित
जीवन हो जाएगा सभी चिंताओं से
मुक्त, उसी एक बिंदु पर कहीं
सुप्त विद्रोह का होता है
उदय, तब भावनाओं
में कहीं जा कर
उभरते हैं
आग्नेय तूफ़ान, उच्च सिंहासन पर हिल जाता है -
बैठा हुआ महा अभियुक्त, तब कदाचित
जीवन हो जाएगा सभी चिंताओं से
मुक्त। विषमता का आलेख
अपने अंदर लिए रहता
है अदृश्य सक्रिय
दहन, जीवन
चाहता है
पाना
विप्लव उपरांत की नीरवता, एक नया सूत्रपात -
अर्थपूर्ण दिनयापन, अभिनव सृजन, हर
एक चेहरे में सजीवता का प्रतिफलन,
मुस्कुराहटों में इक ताज़गी का
एहसास, आँखों की चमक
मणि मुक्ता हो जैसे
गहन जलयुक्त,
तब कदाचित
जीवन हो
जाएगा
सभी चिंताओं से मुक्त।
* *
- - शांतनु सान्याल
15 मई, 2023
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एवमस्तु. ऐसा ही हो. एक दिन हो जाए जीवन चिंताओं से मुक्त.
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
जवाब देंहटाएं