ये भरम कि उनके सिवा कुछ भी नज़र नहीं आया,
उम्र भर चलते रहे दश्त में लेकिन, घर नहीं आया,
सींचते रहे हम दुआओं से क्यारियों को मुसलसल,
गुल खिले शाख़ों में बेशुमार बस, समर नहीं आया,
अजीब है ये दर्द ए ला इलाज, यकसां जीना मरना,
लौटने का वादा किया लेकिन लौट कर नहीं आया,
जलते मशाल थक हार बुझ गए सुबह के इंतज़ार में,
क़ाफ़िला रुका रहा देर तक लेकिन रहबर नहीं आया,
अपने पराए के दरमियां, आगज़नी होती रही हमेशा,
मुस्तक़िल तौर पर बुझाने वाला मातबर नहीं आया,
ख़्वाबों में कहीं देखा है, हर एक चेहरे पे रूहानी सुकूं,
ताउम्र तलाशा लेकिन वो दिलकश मंज़र नहीं आया,
* *
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 25 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....
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आपका हृदय तल से आभार ।
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