न बुझा वो अहद सुलगता जो कभी -
हमने उठाई थी यकजा, रहने
भी दे भरम कुछ तो मेरी
सदाक़त का, अभी
तलक है
मेरे दिल में मौजूद, मुक़द्दस आतिश,
रहने भी दे ज़रा कुछ देर यूँ ही
रौशन यक़ीं ए तहारत
का, जिस्म की
है अपनी
ही मजबूरी, इक दिन तो होगी सुपुर्द
ए ख़ाक, न कर अलहदा रूह
ए ला महदूद, रहने भी
दे उसे ज़िन्दा,
अपनी
धड़कनों में, कुछ तो मिले ने'अमत
उम्र भर की इबादत का,
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ -
तहारत - शुद्धता
नेअमत - आशीष
सदाक़त - वफ़ादारी
अहद - शपथ
अलहदा - अलग
लामहदूद - अंतहीन
हमने उठाई थी यकजा, रहने
भी दे भरम कुछ तो मेरी
सदाक़त का, अभी
तलक है
मेरे दिल में मौजूद, मुक़द्दस आतिश,
रहने भी दे ज़रा कुछ देर यूँ ही
रौशन यक़ीं ए तहारत
का, जिस्म की
है अपनी
ही मजबूरी, इक दिन तो होगी सुपुर्द
ए ख़ाक, न कर अलहदा रूह
ए ला महदूद, रहने भी
दे उसे ज़िन्दा,
अपनी
धड़कनों में, कुछ तो मिले ने'अमत
उम्र भर की इबादत का,
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ -
तहारत - शुद्धता
नेअमत - आशीष
सदाक़त - वफ़ादारी
अहद - शपथ
अलहदा - अलग
लामहदूद - अंतहीन
उम्दा रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
मैं नामे-शम्मे स़ाज हूँ समाँ-साद नहीं हूँ..,
जवाब देंहटाएंशफ़क की सरहदों में हूँ आज़ाद नहीं हूँ..,
शामो-शब् तलक है मेरा शबनमी महताब..,
तारीके-बसर औकात हूँ सहर आबाद नहीं हूँ.....
thanks respected friend - regards
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