25 मई, 2023

ज़बान ए दस्तक - -

मुस्तहिक़ आदमी, हासिए में ढूंढता रहा ठिकाना,
बा असर वालों के पास हैं, अनगिनत आशियाना,

ऊंचाइयों से वो शख़्स, बढ़ाता है रफ़ाक़त के हाथ,
उसे ख़बर है उसके बराबर आसां नहीं पहुँच पाना,

दस्तक से ही पता चल जाता है, दिल का मफ़हूम,
वजह अपनी जगह खोजें, कोई मिलने का बहाना,

बेरंग सा है जिस्म का लिफ़ाफ़ा, ख़ुश्बू भी नदारद,
पढ़ना नहीं आसां, तहे दिल का मज़मून अनजाना,

दहलीज़ पे कोई, अल सुबह गुलदस्ता रख जाता है,
ख़्वाबों के सिवा किसी का नहीं है यहाँ आना जाना,
    
मिट्टी का तन है ताहम कर चुका मैं जिस्म - अतिया,
ख़ुशी होती है, किसी और के दिल में हो मेरा तराना,
- - शांतनु सान्याल

मुस्तहिक़ - हक़दार, मज़मून - विषय
रफ़ाक़त - मैत्री, अतिया - दान
 मफ़हूम - आशय                         

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