तनाब ए दुनियादारी थे बेहद कमज़ोर दो क़दम ही न
चल पाए कि टूट
गए, अक्स
से बढ़
कर
मेरा गवाह कोई नहीं, चाह
कर भी हम अपना दलील
रख नहीं पाए, आईने
के सिवा दूसरा
दस्तावेज़
पास
नहीं,
मुद्दतों से हूँ सज़ा याफ़्ता,
जीने के अलावा मेरा
गुनाह कोई नहीं,
किसे सुनाएं
फ़रियाद
ए ज़िन्दगी,
वक़्त से
बढ़
कर बेरहम मुन्सिफ़ कोई नहीं,
चाहे हम कहीं भी रह लें,
चार दिनों से बढ़ कर
मुक्कमल पनाह
गाह कोई
नहीं ।
- - शांतनु सान्याल
तनाब - रस्सी बाज़ीगरी के लिए
मुन्सिफ़ - न्यायाधीश
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