23 मई, 2023

जीने का सलीक़ा

अब हस्र जो भी हो, अहद तो उठा ली है,
इस रात की है शायद अपनी ही मजबूरी
सुबह तक दिल में तेरी दुनिया बसा ली है,
कल पूछ लेना जीने का सलीक़ा हमसे -
ज़िन्दगी आज तुझको दिल से सजा ली है,
उफ़क़ के पार क्या है, हमें मालूम नहीं
उन आँखों में हमने ख़्वाबों को जगा ली है |
- शांतनु सान्याल

Painting by Asif Kasi 

4 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past