19 मई, 2023

शुक्रगुज़ारी - -

इक याद थी बाक़ी, जिसे यूँ जला के बुझाए,
दर्द ए दिल, कह गए वो भीगी पलक झुकाए,

कभी ताज़ा रू मोती, कभी क़तरा ए शबनम,
उन आँखों ने, इस दिल पे कई ख़्वाब सजाए,

उजड़ कर फिर बस जाएंगी, सभी जीस्तगाहें,
बसती नहीं दिल की दुनिया अगर उजड़ जाए,

दूर तक हैं तन्हाइयां, ओझल है उफ़क़ लकीर,
ख़ुद हैं मुल्ज़िम, जान बूझ कर ही फ़रेब खाए,

शब ए इंतज़ार लगती है कहीं उम्र से भी लंबी,
गोर ए इश्क़ पे कोई, शगुफ़्ता गुलाब रख जाए,
* *
- - शांतनु सान्याल
जीस्तगाहें  - बस्तियां
उफ़क़ - क्षितिज
गोर ए इश्क़ - प्रेम समाधि
शब - रात
शगुफ़्ता - खिला हुआ

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