06 मई, 2023

ज़ख्म बेक़रां

ये माना कि ज़िन्दगी में हर ख़ुशी नहीं
मिलती, हर्ज़ क्या हैं आख़िर मुस्कराने में,
हासिये में थे हम ये सच है, बावजूद
वक़्त लगता है ज़रा, तूफां गुज़र जाने में,

किसी ने नहीं देखा हवाओं का दम घुटना
भीगी ख़ुश्बू का, बहाना बना गए हम,
छलकते आँखों में थे ख़ामोश ज़ख्म बेक़रां
सिसकतीं साँसों का तराना बना गए हम,

रिश्तों की बारीकियां हमसे न पूछो
टूटतीं हैं साँसें हर बार साहिल से लौट कर,
चाँद की रौशनी हरगिज़ कम न थी
बिखरे हैं दर्द यूँ ही बारहा दिल से लौट कर,
* *
- - शांतनु सान्याल

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