11 मई, 2023

वामा तरंगिणी - -

 

एक विशाल नदी, जिस से हूँ मैं पूर्व परिचित,
कभी वो मुझ से मिल कर, मुझ में है किंचित,

कभी देखता हूँ, उसकी गहनता में प्रतिच्छवि, 
अंकशायिनी की भांति वो है, मुझ में निश्चित,

उस के गर्भगृह में है सृष्टि का अंकुरण उत्सव,
कभी वो करती है, तटबंध के बंजरों को सिक्त, 

वो जोड़ती है नेह सेतुओं से दोनों विश्रृंखल तट,
उसके एक ही जनम में है कई जीवन समाहित,

कभी श्वेत हिमल चादर के नीचे है उष्ण प्रवाह,
कभी प्रलयंकर रौद्र रूप में वो बहे अप्रत्याशित,

उस वामा तरंगिणी में है रहस्यमयी स्वर्ग नदी,
तट में जिसके करते हैं पापों का हम प्रायश्चित। 
* * 
- - शांतनु सान्याल Painting by Nandlal Bose 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past