12 मई, 2023

एक भीगा स्पर्श

उस सजल नयन के तीर बसे हैं कदाचित
चमकीले बूंदों की बस्तियां, साँझ ढले
ख़ुश्बुओं के जुगनू जैसे उड़ चले
हों दूर अरण्य पथ में, अंत
प्रहर के स्वप्न की
तरह, बहुत ही
नाज़ुक,
कोई प्रणय गीत लिख गया शायद मन -
दर्पण में भोर से पहले, तभी खिल
चले हैं भावना के कुसुम, सूर्य
उगने से पहले, न जाने
कौन छू सा गया
लाजवंती के
पल्लव,
कांपते अधर से गिर चले हैं शिशिर कण,
या उसने छुआ हैं अंतर्मन - -

- शांतनु सान्याल




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