यूँ निगाह मिला के, निगाह चुराया न करो,
रुख़ मोड़ के, हाथ से हाथ मिलाया न करो,
इस बियाबां की आदत सी हो गई मुझ को,
ख़्वाबों की भीड़ में, बेवजह बुलाया न करो,
मजरूह दिल ले कर हर क़दम मुस्कुराते हैं,
बारहा शीशा ए दिल को आज़माया न करो,
ज़माने की तिरछी नज़र है बहोत ही ख़तीर,
बेनक़ाब सर ए आम यूँ आया जाया न करो,
लब ए शमशीर पे चलने का हौसला चाहिए,
अहद ए इश्क़ को, बेहोशी में उठाया न करो,
अनगिनत लब ए तिश्ना, तकते हैं चाँद को,
ज़ुल्फ़ों की घटाएं, यूँ रुख़ पे गिराया न करो,
न जाने कितने आशिक़ पा-ब-जौलाँ निकले,
झुकी नज़र से यूँ ही, ज़ामिन दिलाया न करो,
* *
- - शांतनु सान्याल
पा-ब-जौलाँ - - पैरों में जंजीर लिए
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 मई 2023 को 'तितलियों ने गीत गाये' (चर्चा अंक 4664) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।