पुरातन मंदिर की हो तुम सांध्य दीप शिखा,
सिहरित समय कंठ में गुंजित कोई
प्रणय गान, भाषा विहीन मधुर
मुखरता, अनंतकालीन कोई
नीरवता, कल्पवृक्ष की
सघन शीतलता,
अदृश्य स्पर्श
में है कोई
जादू
जो कर जाए मुक्त, जीवन की गहन व्यथा,
पुरातन मंदिर की हो तुम सांध्य दीप शिखा।
निशीथ पलों की हो तुम उन्मुक्त रजनीगंधा,
संधि बेला में हो तुम सुदूर प्रतिध्वनित
शंख ध्वनि, सीप के अंतःस्थल में
उद्भाषित विरल मणि मुक्ता,
पूर्ण चंद्र की रात में हो
तुम महासागर का
उफान, रात
ढले तुम
हो एक
बिंदु शिशिर सिक्ता, जीवन में जो बढ़ा जाए -
अंतहीन तृषा, अदृश्य आलिंगन से बहे
सुरभित सृष्टि की रूप कथा, निशीथ
पलों की हो तुम उन्मुक्त
रजनीगंधा, पुरातन
मंदिर की हो तुम
सांध्य दीप
शिखा।
* *
- - शांतनु सान्याल
painting -Amit Bhar
आप ने लिखा.....
जवाब देंहटाएंहमने पड़ा.....
इसे सभी पड़े......
इस लिये आप की रचना......
दिनांक 15/05/2023 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है.....
इस प्रस्तुति में.....
आप भी सादर आमंत्रित है......
आपका हृदय तल से आभार ।
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