जो दुनिया से जा चुका, उसके लिए हम ख़ूबसूरत मक़बरा बनाते हैं,
किसी को जिस्म छुपाने के लिए, कुछ गज़ कपड़ा भी मय्यसर नहीं,
कुछ लोग संगमर्मर के ऊपर, सोने चांदी से बिने हुए चादर चढ़ाते हैं,
न जाने कितने ही लोगों का हक़ मार कर वो बन गए ताजिर ए शहर,
ख़ुदा के नाम पे मुफ़्त लंगर लगवा कर वो अपनी पशेमानी छुपाते हैं,
चौराहे पर खड़े नाम निहाद दानिशवर, दे रहे हैं अख़लाख़ पे तक़रीर,
घुप्प अंधेरे में, वही कितने ही मासूम ज़िन्दगियों को दांव पे लगाते हैं,
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- - शांतनु सान्याल
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