ये ख़ुमार ए नीम शब, यूँ ही गुज़र न जाए कहीं,
न रहो यूँ बेहर्फ़, सहमे सहमे, फ़ासलों में तुम,
नूर महताब वादियों में यूँ ही ठहर न जाए कहीं,
हम कब से हैं खड़े, अपनी साँसों को थामे हुए -
ये गुलदां ए ज़िन्दगी, यूँ ही बिखर न जाए कहीं,
बंद पलकों में हैं, रुके रुके से सितारों के साए -
मसमूमियत ए इश्क़, यूँ ही उतर न जाए कहीं,
ये ख़ुमार ए नीम शब, यूँ ही गुज़र न जाए कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
midnight-blue-victoria-chattopadhyay
न रहो यूँ बेहर्फ़, सहमे सहमे, फ़ासलों में तुम,
नूर महताब वादियों में यूँ ही ठहर न जाए कहीं,
हम कब से हैं खड़े, अपनी साँसों को थामे हुए -
ये गुलदां ए ज़िन्दगी, यूँ ही बिखर न जाए कहीं,
बंद पलकों में हैं, रुके रुके से सितारों के साए -
मसमूमियत ए इश्क़, यूँ ही उतर न जाए कहीं,
ये ख़ुमार ए नीम शब, यूँ ही गुज़र न जाए कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-05-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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