ज़िन्दगी इक बार ही मिलती है, किसे
मालूम उस पार की दुनिया, शीर्षक
हो सकते हैं मुख़्तलिफ़ लेकिन
बहोत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं
होता अफ़सानों में,
सौ फ़ीसद का
सुख है इक
सपना,
फिर
भी ग़र वक़्त मिले कभी मेरी ख़ातिर
एक ख़ुश्बुओं वाला ख़त ज़रूर
लिखना, बहा देना उसे
पहली बारिश में
नन्ही काग़ज़
की नाव
संग,
जब कभी महसूस हो गहरा अकेलापन,
अप्रेषित ख़त का काग़ज़ी विमान
बनाना, उड़ा देना उसे सुदूर
अनदेखे आसमानों में,
शीर्षक हो सकते हैं
मुख़्तलिफ़
लेकिन
बहोत
ज़्यादा फ़र्क़ नहीं होता अफ़सानों में -
राखदानी है रखी हुई अपनी जगह
उड़ चुका धुआं फ़िज़ाओं में,
ख़ुश्बुओं में ढल चुकी
मुहोब्बत, पुरसुकूं
ख़ामोशी है
याद के
ख़्वाबगाहों में, सितारों की महफ़िल उठ
चुकी, कोई भी आश्ना चेहरा नहीं
मौजूद, ख़ालीपन सा बिखरा
हुआ है कहकहों के
ठिकानों में,
शीर्षक
हो सकते हैं मुख़्तलिफ़ लेकिन बहोत - -
ज़्यादा फ़र्क़ नहीं होता
अफ़सानों में ।
* *
- - शांतनु सान्याल
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०७-०५-२०२३) को 'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक -४६६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
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