30 नवंबर, 2022

 पुराना अलबम - -

मजरूह अल्फ़ाज़ ढूंढते हैं हाशिए के बाहर ठिकाना,
बेमानी उन्वान होते हैं, महज ख़ानदानी नज़राना,

झूलते रहे रंगीन फीते, संग ए बुनियाद रहा तनहा,
स्याह बस्ती का ज़ख्म है नासूर, दुनिया से बेगाना,

चाँद, सितारे, इश्क़, मुहोब्बत तक है, हदूद उनकी,
एक मुद्दत से लोग भूल चुके हैं, खुल के मुस्कुराना,

अब आवाज़ में, वो कशिश नहीं बाक़ी,जो कभी थी,
वाक़िफ़ चेहरा भी तलाशता है भूल जाने का बहाना,

माज़ी के पन्नों में वो खोजता है गुमशुदा अक्स को,
कबाड़ में लोग बेच देते हैं अक्सर, अलबम  पुराना ।
* *
- - शांतनु सान्याल


 

 


 

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०१-१२-२०२२ ) को 'पुराना अलबम - -'(चर्चा अंक -४६२३ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. बेहतरीन भाव प्रवणता लिए उम्दा सृजन।

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  4. चाँद, सितारे, इश्क़, मुहोब्बत तक है, हदूद उनकी,
    एक मुद्दत से लोग भूल चुके हैं, खुल के मुस्कुराना,

    जवाब देंहटाएं

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