04 नवंबर, 2022

विक्रम की मज़बूरी - -

धीरे से दरवाज़ा ठेल कर पूछा था उसने मेरा हाल,

निःसीम अंधकार में सौजन्यता का था प्रश्नकाल,


छद्म भूमिकाओं में कहीं, खो जाता है कर्तव्य पथ,

उपदेश देने में कुछ नहीं जाता देते रहिए बहरहाल,


बेरंग दीवारों पर फिर से लिखें अच्छे दिन का सच,

उलटे ख़्वाबों को कंधे में रखता देख मौन है बेताल,


दरबार के गणमान्य हाथों में जयगान लिए बैठे हैं,

सभी मेरूदंड विहीन हैं कौन पूछेगा राजा से सवाल,


दरअसल कोई भी नहीं यहाँ धुला हुआ तुलसी पत्र,

वही गोलमोल घोषवाक्य, आश्वासनों के भेड़चाल। 

* * 

- - शांतनु सान्याल 



     

 

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