दहन कुण्ड जलाओ, मोम की रौशनी बुझने
को है, लेकिन शून्यता में विलुप्त होने
से पहले बहुत कुछ याद आने
लगे हैं, सुबह सवेरे, धीरे
से दरवाज़ा खोल
कर, सावरकर
चौक तक
जा
सब्ज़ियों के साथ लौटना, पत्नी की दवाइयां
लाना, फोन रिचार्ज करना, बिजली का
बिल, इंटर नेट का बिल लैपटॉप
से भरना, बिटिया का फोन
बैंगलोर से आया या नहीं,
उसका बेटा कैसा है,
उसकी तबियत
तो ठीक है,
उसका
जॉब
तो ठीक ठाक चल रहा है, कबूतर, फ़ाख्तों -
को बाजरी के दाने मिले या नहीं, पत्नी
के साथ पराजित तर्क का प्रतिशोध
बाक़ी है, वग़ैरा वग़ैरा, कदाचित
पुनः गाण्डीव उठानी होगी,
क्या संभव नहीं है
हे ! केशव
उम्र की
रेखा
कुछ और बढ़ा दी जाए, अधूरे ख़्वाहिशों के
रंग कुछ और बिखरने को है, दहन -
कुण्ड जलाओ, मोम की रौशनी
बुझने को है - -
* *
- - शांतनु सान्याल
22 नवंबर, 2022
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जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएंहमेशा की तरह अद्भुत शब्दों का जाल
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया।
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