नाम गाम अता पता तो जानें, तबाह होने से पहले,
क़ातिल कोई निशां नहीं छोड़ता गुनाह होने से पहले,
अल्फ़ाज़ की चाशनी में छुपे रहते हैं, क़तरा ए ज़हर,
अपनों का उपदेश कुछ तो सुनें, बर्बाद होने से पहले,
ज़रूरत से ज़ियादा यक़ीं, ले जाता है अंधेरे की ओर,
नाज़ुक परों को लोग कतर देंगे आज़ाद होने से पहले,
हसीन ज़िन्दगी का भरम दिखा कर लूट लेते हैं लोग,
ख़ुद को बचाने का हुनर सीखें, नीलाम होने से पहले,
हर मोड़ पर खड़े हैं शिकारी, मजनू ओ रांझे के वेश में,
सोच समझ के गुज़रें यूँ टुकड़ों में तमाम होने से पहले ।
* *
- - शांतनु सान्याल
16 नवंबर, 2022
कसाइयों के गिरफ़्त में - -
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डरावनी सच्चाई ! जागरूकता की अति आवश्यकता है !
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आपका ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 नवंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
असंख्य आभार आपका ।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 17 नवंबर 2022 को 'वो ही कुर्सी,वो ही घर...' (चर्चा अंक 4614) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
असंख्य आभार आपका ।
हटाएंवाह!बहुत खूब ..सचेत करती हुई .....।
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएंहर मोड़ पर खड़े हैं शिकारी, मजनू ओ रांझे के वेश में,
जवाब देंहटाएंसोच समझ के गुज़रें यूँ टुकड़ों में तमाम होने से पहले ।
असंख्य आभार आपका ।
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