26 नवंबर, 2022

चिरहरित अनुभूति - -

याद नहीं कब अंजुरी भर वृष्टि - बूंद की थी चाह,
शैशव पलों में दौड़ गया था, उन्मुक्त हो बेपरवाह,

अंकुरित भावनाओं में थे चिपके हुए मासूम खोल -
नव पल्लवों को न मिल सकी कच्ची धूप की थाह,
   
जाने कब लिखी थी, ग़लत हिज्जों वाली वो चिट्ठी,
संग बही, जो पहली बारिश में थी काग़ज़ की नाव,

तरुण पलों में चाहा था, उसे बांधना, ह्रदय कगार, -
वो कोई उन्मुक्त नदी थी, जिसे नापसंद था ठहराव,

प्रौढ़ क्षणों का एहसास, इक किताब का सूखा गुलाब,
जो कभी नहीं मरता वो है, सदाबहार सा, इक ख़्वाब,

वर्षा की चंचल बूंदों का सुख है, हथेलियों का स्पर्श,
वैसे भी राही को है जाना, बिन कोई माल असबाब,
* *
- - शांतनु सान्याल  
 

 
 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. 'वैसे भी राही को है जाना, बिन कोई माल असबाब' - कटु सत्य! सुन्दर रचना है प्रिय महोदय!

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