याद नहीं कब अंजुरी भर वृष्टि - बूंद की थी चाह,
शैशव पलों में दौड़ गया था, उन्मुक्त हो बेपरवाह,
अंकुरित भावनाओं में थे चिपके हुए मासूम खोल -
नव पल्लवों को न मिल सकी कच्ची धूप की थाह,
जाने कब लिखी थी, ग़लत हिज्जों वाली वो चिट्ठी,
संग बही, जो पहली बारिश में थी काग़ज़ की नाव,
तरुण पलों में चाहा था, उसे बांधना, ह्रदय कगार, -
वो कोई उन्मुक्त नदी थी, जिसे नापसंद था ठहराव,
प्रौढ़ क्षणों का एहसास, इक किताब का सूखा गुलाब,
जो कभी नहीं मरता वो है, सदाबहार सा, इक ख़्वाब,
वर्षा की चंचल बूंदों का सुख है, हथेलियों का स्पर्श,
वैसे भी राही को है जाना, बिन कोई माल असबाब,
* *
- - शांतनु सान्याल
26 नवंबर, 2022
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
असंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएं'वैसे भी राही को है जाना, बिन कोई माल असबाब' - कटु सत्य! सुन्दर रचना है प्रिय महोदय!
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीय ।
हटाएं👍 😍
हटाएंउम्दा अभिव्यक्ति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीय ।
हटाएं