सितारों का है समारोह, सज चला है नीला आसमां,
साथ हमारे चल रहा है, अंतहीन रौशनी का कारवां,
मंत्रमुग्ध पलों में बिखर रही है वन्य पुष्पों की महक,
चाँदनी के परिधान ओढ़े, बढ़ चले हैं हम जाने कहाँ,
पल भर में जी ली है, इक लम्बी उम्र जीने की खुशी,
सजल अधर पर बिखरे पड़े हैं, सुधा बूंद जहाँ - तहाँ,
पलकों पर हैं पलकें झुके हुए, देह गंध बने एकाकार,
युगल रूहों का है ये मिलन, अपृथक हैं दो परछाइयां,
स्वर्ग नरक, धर्म अधर्म, पाप पुण्य, अपना या पराया,
जितना डूबें दूर वो सरके सोच से परे हैं वो गहराइयां,
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- - शांतनु सान्याल
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